Thursday 9 June 2011

My First Ghazal

ग़ज़ल
हर शख्स टूट जाये  मुकद्दर के सामने 
शीशे की क्या बिसात है पत्थर के सामने 
कोई गुलाब जैसा है चेहरा निगाह में 
कटती है सुबह शाम  गुल- ऐ- तर  के  सामने 
हालांके दिल में एक समंदर ग़मों का था 
लाये न  अश्क आँख में  दिलबर के सामने 
लाशा (जनाज़ा ) मेरा उठा तो उन्हें जब पता चला 
ये भीड़ क्यों  लगी है मेरे घर के सामने 

0 comments:

Post a Comment

 
Copyright © 2010 Feelings by Urdu ( A blog that say somthing). All rights reserved.